रामपुर बुशहर। विशेषर नेगी—–
शिमला जिला के झाकड़ी वार्ड ज़िला परिषद उप चुनाव भाजपा व कांग्रेस के नेताओं की गल्ले की फांस बन चुकी है। यह उप चुनाव जहां विधानसभा टिकट का रास्ता साफ करेगा वही किस पार्टी की कितनी साख बनी या गिरी है वह भी तस्वीर सामने आएगी। इस उप चुनाव से दोनो दलों के टिकट के चाहवान नेताओं का अब तक के मेहनत का रिपोर्ट कार्ड भी सामने आएगा । ऐसे में राजनीतिक दृष्टि से यह उपचुनाव रामपुर विधानसभा हलके के कांग्रेस व भाजपा नेताओं के लिए विधान सभा चुनाव नजरिये से सेमी फाइनल साबित होगा। अब तक कि तस्वीर बताती हैकि दोनो ही प्रमुख दलों के कुनबे में रुष्ट टोली काफी सक्रिय हुई है जो कुनबे के लिए पीड़ादायक बनी है । रुष्ट खेमा चुनाव में करवट कहाँ बदलते हैं , इस उप चुनाव में महत्वपूर्ण रहने वाला है। अब तक के समीकरण व सुगबुगाट से वामपंथी प्रत्याशी की दोनों हाथों में लड्डू देखा जा रहा था। जो वामपंथी शुरू में इस उपचुनाव के लिए प्रत्याक्षी उतारने से भी कतरा रहे थे। उनके हौसले बुलंद होने लगे थे। लेकिन 7 अगस्त की शाम रचोली मंदिर में 5 देवताओं के आंगन में लगाई गई प्रश्ना ने भाजपा समर्थित प्रत्याक्षी को संजीवनी दे गया है।
बहरहाल अगर कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस के पास केवल राज परिवार के मार्फत सहानुभूति वोट की संजीवनी सुरक्षित है। यहदिगर हैकि विधायक का प्रतिद्वंदी खेमा अंदर खाते अब की बार जमीन दिखाने के प्रयास में है । इस राजनीतिक माहौल में गुना भाग के बाद वे मन बना चुके है जी हजूरी से कम नही अंदर की काट सफलता की सीढ़ी है।उन्हें अभ्यास हो गया हैकि अगर अभी वे राज दरबार के इशारे पर फिर से मुड़ कर पटरी पर आते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में वे कठपुतली ही साबित होंगे। ऐसे में अभी अपनी अहमियत को दर्शना अक्लमंदी रहेगी। यहां तक की राजनैतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी के प्रचार में कांग्रेस विधायक की भागदौड़ कई स्थानों पर रंगत लाने में विफल हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी की मुश्किल कम नहीं हो रही। दूसरी ओर भाजपा समर्थित प्रत्याशी की टीम तकनीकी तौर से मजबूती के साथ जनता के बीच जाकर जहां अपने काडर को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास कर रही है। वही युवाओं का समर्थन के साथ साथ कुछ कांग्रेस विचारधारा के लोगों का दिल जीतने में भी सफलता पाना बताया जा रहा है। वर्तमान परिदृश्य के हिसाब से मुकाबला काफी रोचक बनता जा रहा है। रामपुर को शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन जिला परिषद के झाकड़ी वार्ड के पिछले 3 चुनाव वामपंथी दल के खाते रहा है। हालांकि इस बार माकपा प्रत्याशी आम जनता के बीच इतनी पहचान नहीं बना पाई थी। लेकिन वामपंथियों की निद्रा दोनो प्रमुख दलों की काली भेड़ो से टूटी। अब वे रुष्ट टोली की झोली की ओर टकटकी लगाए है। सूत्र बताते है कि दोनों खेमो के रुष्ट नेताओं की वामपंथियों से जुगलबंदी भी हो सकती है। लेकिन यह सम्पर्क व तर्क विर्क कितनी सिरे चढ़ते है भविष्य के गर्भ में है। यहां कांग्रेस के रुष्ट अभी देख रहे हैं कि पलड़ा किस की ओर ज्यादा झुक जाता है, उनके पास विकल्प भाजपा और वामपंथी में से एक हो सकता है । मसलन भाजपा के लिए मुश्किले अपने ही घर के लोग खड़ी करने का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि रुष्ट व विरोधी खेमा अपने अरमानों को तिलांजलि देना नही चाहता है और जिला परिषद प्रत्याशी के परिणाम के मार्फ़त विधानसभा प्रत्याशी की छवि छेद डालने की फिराक में है । इसलिए अंदर खाते काट की रणनीति विकल्प है। इस के साथ साथ एक हथियार यह भी प्रयोग किया जा रहा है कि सरकारों ने अनुसूचित जाति उप योजनाओं के धन को वास्तविक मदों में खर्च न कर उसे अन्यत्र खर्च किया जाता रहा है, यह केवल रामपुर का ही मुद्दा नहीं प्रदेश स्तर का है। लेकिन आरक्षित वर्ग के दिमाग में यह बातें चर्चा के साथ उत्सुकता पैदा कर रही है। बहरहाल जहां कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के लिए रामपुर के वर्तमान विधायक लगातार प्रचार में जुड़े हैं और संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही शिमला ग्रामीण के विधायक एवं रामपुर राज परिवार के सदस्य विक्रमादित्य सिंह कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के हक में कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करने जल्द रामपुर पहुंच सकते हैं। क्योंकि अगर हार होती है तो कांग्रेस हाईकमान के लिए अप्रत्यक्ष तौर से बड़ा प्रतिकूल संदेश जा सकता है । इन तकनीकी पहलुओं के हिसाब से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह अपने घर को मजबूत रखने का हरसम्भव प्रयास करेगी । इस तकनीकी पेच से कांग्रेस व भाजपा के लिए यह जिला परिषद उपचुनाव आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सेमी फाइनल के रूप में होने के साथ-साथ यह भी तय करेगा कि वर्तमान विधायक की छवि कितनी सशक्त है और जनता के बीच में उनकी पकड़ क्या मायने रख रही है । उधर दूसरी ओर भाजपा के नए चेहरे कौल सिंह जहां संगठन में काम करने की क्षमता व तजुर्बे को प्रदर्शित करते हुए आगे बढ़ रहे हैं और उसमें वे काफी हद तक विपरीत विचार धारा को भी अपने साथ जोड़ कर कुनबा बढ़ाने में प्रथम सीढ़ी चढ़ चुके है।यह जरूर हैकि जहां पहले कांग्रेस की टोली में युवा चेहरा अधिक होता था वही अब भाजपा की टोली भी युवाओं की चहल कदमी से गुलजार हुई है। यद्यपि दोनो ही प्रमुख दलों के पास रुष्ट व महत्वाकांक्षी कुनबा लंगडी के लिए हर तरह से खड़ा है। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है। उधर वामपंथी भी पुरानी साख को बचाने व अपनी सीट को बरकरार रखने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। इसके साथ साथ कांग्रेस और भाजपा के रुष्ट टीम की रणनीति पर नजर गढ़ाए हैं । उन्हें उम्मीद हैकि दोनो पार्टियों के रुष्ट व टिकट के इच्छाधारियो का आखिर वोट विकल्प वामविचार धारा हो सकता है । इस उम्मीद के साथ ठियोग के विधायक राकेश सिंघा ज़िला परिषद झाकड़ी वार्ड उप चुनाव में कूद चुके है।