रामपुर बुशहर। न्यूज व्यूज पोस्ट।
हिमाचली समृद्ध संस्कृति एवं परंपरा को कायम रखने में रामपुर का फाग उत्सव महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । होली के दूसरे दिन से बसंत आगमन की खुशी में मनाया जाने वाला जिला स्तरीय चार दिवसीय फाग उत्सव बाहरी दुनिया को अपनी संस्कृति प्रदर्शित करने का एक मंच देता है। देवी देवताओं का देव वाद्य यंत्रों की धुनों में नर्तन दलों के साथ शोभा यात्रा एक अनूठा एहसास एवं छाप छोड़ जाता है। लेकिन इस विशुद्ध सांस्कृतिक उत्सव को अप्रत्यक्ष दूषित करने की एक पहल हुई है। कुछ संगठनों द्वारा कथित अपने राजनीतिक एवं अस्तित्व को बनाए रखने के लिए फाग उत्सव के साथ कार्निवल का लिबास पहना कर पश्चिमी सभ्यता एवं मंच पर गायन की व्यवस्था में समेटने का प्रयास हो रहा हैं। हालांकि बुशहर कार्निवाल का आयोजन करना एक सकारात्मक पहल है, लेकिन इस कार्निवाल को फाग में घोल कर आगे बढ़ाना भविष्य में सांस्कृतिक प्रदूषण को जन्म दे सकता है। कार्निवाल को अलग समय में आयोजित किया जाता है तो इस का वास्तविक लाभ भी होगा। लेकिन फाग की बैसाखी ले कर कार्निवाल की दौड़ मुंह से निवाला निकालने समान प्रतीत हो रहा है। बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि फाग जेसे उत्सवों को परंपरा के अनुसार आयोजित करते हुए ग्रामीण इलाको से आए नर्तक दलों को जहां प्रोत्साहित करना चाहिए, वही लोक नृत्य एवं माला नृत्य को भी इसमें प्राप्त स्थान दे कर उत्साहित करना होगा, ताकि भविष्य के लिए क्षेत्रीय परंपरा को संरक्षित एवं प्रोत्साहन मिल सके। वैसे भी ग्रामीण परिवेश से बाहर निकल कर अपनी प्रस्तुति को जनता के मध्य परोसना बिना संसाधनों के मुश्किल होता है।बहरहार
देवी देवताओं के सानिध्य में हिमाचली संस्कृति को बनाए रखने में फाग जैसे उत्सव एक सेतु का काम कर रहे है। प्रबल देवीय आस्था से सराबोर मानसिकता के चलते ही देवी देवताओं की मौजूदगी में ऐसे उत्सवो पर पश्चिम संस्कृति का रंग नही चढ़ पाया है । लेकिन कार्निवल रूपी पश्चिमी विकार के नाम से सांस्कृतिक मेले में घुसपैठ जारी होना चिंता का विषय बना है। बुद्धिजीवीवर्ग का कहना है कि खासकर फाग मेले के दौरान बुशहर के नाम से कार्निवाल का आयोजन बिल्कुल भी उचित नहीं। केवल मात्र फाग की भीड़ को कार्निवाल के रंग में रंगने की कोशिश कथित राजनीतिक एवं पहचान को दर्शाने का दुस्साहस है। पहाड़ी संस्कृति के हिमायती लोगो का कहना है कि ऐसे उत्सवों को राजनीति से दूर रखते हुए विशुद्ध सांस्कृतिक लिबास से ओढ़ कर रखना होगा, अन्यथा ग्रामीण लोग भी रस भरे अथवा प्रेरणादाई गीतो के गायन को भूल कर मंच पर चढ़े व्यवसायिक गायक का मूंह ताकते रह जायेंगे। इसलिए बुशहर रियासत काल से आयोजित किए जा रहे फाग उत्सव को बुशहर कार्निवल का लिबास पहनाकर आगे बढ़ने की हिमाकत संस्कृति में विकार पैदा करने समान माना जा रहा है।जो भविष्य में रीति रिवाज, परंपरा अथवा देव संस्कृति को हाशिए पर धकेल सकता है।