रामपुर बुशहर। न्यूज़ व्यूज पोस्ट—-सीटू और हिमाचल किसान सभा ने नीरथ, बिथल व रामपुर के अनेक स्थानों में 19 जनवरी 1982 को यूनाइटेड प्लेटफॉर्म ऑफ ट्रेड यूनियनों, खेतमज़दूर व किसानों द्वारा पहली बार संयुक्त रूप से देशव्यापी आम हड़ताल के 40 वर्ष पूरे होने पर मजदूर किसान एकजुटता दिवस के रूप में मनाया।
इस अवसर पर मजदूरों और किसानों को सम्बोधित करते हुए सीटू के जिला अध्यक्ष कुलदीप सिंह , दिनेश मेहता, हरदयाल जेल्टा, कपिल,हेम राज, जसबीर, हरीश ने कहा कि आज के दिन 1982 में पहली बार आम हड़ताल जिसे संयुक्त प्लेटफ़ॉर्म ऑफ ट्रेड यूनियन ने दिया था जिसमें न केवल श्रमिकों और कर्मचारियों की भागीदारी की थी, बल्कि ग्रामीण हड़ताल और हड़ताली श्रमिकों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर सड़क-नाकाबंदी प्रदर्शनों के माध्यम से देश भर में किसानों और कृषि श्रमिकों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। परन्तु आंदोलन को दबाने के लिए उस समय राज्य सरकारों द्वारा क्रूर हमला किया गया और देश के विभिन्न हिस्सों में शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को पुलिस दमन और गोलीबारी से किसानों और मजदूरों के 10 लोग शहीद हो गए थे और कई घायल हो गए।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और अन्य अखिल भारतीय मजदूर संगठनों के संयुक्त मंच द्वारा 1982 की आम हड़ताल, सत्ताधारी सरकारों की नीतियों से आम जनता के जीवन और आजीविका पर शोषणकारी और दमनकारी नीति के खिलाफ लगभग एक साल के लंबे चले अभियान और आंदोलन का परिणाम था। मजदूर-किसानों की शहादत की 40वीं वर्षगांठ का विशेष महत्व है।ऐसा इसलिए भी है क्योंकि प्रतिगामी कृषि कानूनों, एमएसपी और अन्य ज्वलंत मांगों को रद्द करने की मांग करते हुए मजदूर वर्ग द्वारा सक्रिय किसानों की देशव्यापी कार्रवाई में शरीरिक एकजुटता के साथ-साथ 40वीं वर्षगांठ वर्ष ऐतिहासिक किसान संघर्ष की पृष्ठभूमि में आ गया है। जिसमें 700 से अधिक किसानों की शहादत के साथ संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नेतृत्व में किसानों के ऐतिहासिक एकजुट संघर्ष ने कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया। ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच द्वारा देशव्यापी सक्रिय एकजुटता की कार्रवाइयों ने अंततः एसकेएम और ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के बीच एकता का एक पुल विकसित किया, जिसमें दोनों एकजुट मंचों ने एक-दूसरे की मांगों को पूरे दिल से समर्थन दिया, जो अंततः बर्बरता के दृढ़ विरोध पर केंद्रित था।जनता पर कारपोरेट-लूट के खिलाफ एकजुट होकर मजदूरों और किसानों के संयुक्त मंचों द्वारा आवाज उठाई गई। आपसी विश्वास पैदा करते हुए, कार्रवाई और एकजुटता की प्रक्रिया में मजदूर वर्ग और किसान वर्ग की एकता एक नए आयाम तक पहुंच गई है।
आज केंद्र की मोदी सरकार नवउदारवादी नीतियों को लागू कर पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गयी है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले मुफ्त में करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के तहत मोदी सरकार बैंक, बीमा, रेलवे, सड़क, बीएसएनएल ,एयरपोर्टों, स्टेडियम, बिजली , बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। आम जनता से आज स्वास्थ्य ,शिक्षा को दूर कर पूंजीपतियों, उद्योगपतियों व कॉरपोरेट को फायदा पंहुचाने का काम किया जा रहा है।
सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध करने के अधिकार पर हमला किया जा रहा है जो सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश कर रहें उन्हें दमन का सामना करना पड़ रहा है। मालिकों के पक्ष में नीतियों को लागू कर मजदूरों का रोजगार छीना जा रहा है किसानों को फसलों का सही दाम नहीं मिल रहा है महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी है ।23-24फरवरी को होने वाली हड़ताल जिसमें मजदूरों व समाज के अन्य तबकों की मांगों को लेकर मजदूरों और आम जनता के बीच प्रचार अभियान किया जा रहा है । जिसमें मजदूरों व आम जनता की मांगों सभी का इलाज मुफ्त में किया जाए, महंगाई पर तुरंत रोक लगाई जाए, सबको मुफ्त में वेक्सीन लगाई जाए, सबको महामारी चलने तक 10 किलो प्रति व्यक्ति मुफ्त राशन दिया जाए, प्रत्येक परिवार को 7500 रु प्रतिमाह आर्थिक मदद दी जाए, मनरेगा वर्कर को 700 रुपये दिहाड़ी व 200 दिन का रोजगार दिया जाए, संयुक्त किसान मोर्चे के 6सूत्रीय मांगपत्र को स्वीकृति, 4मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं व बिजली संशोधन विधेयक 2021 को निरस्त किया जाए, निजीकरण पर रोक लगाना, न्यूनतम वेतन 26000 रुपए करने की मांग को लेकर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों की देशव्यापी आम हड़ताल 23-24 फरवरी 2022 को होगी जिसमें संयुक किसान मोर्चा के द्वारा ग्रामीण बंद का आह्वान किया गया है। जिससे मजदूरों और किसानों की एकता और मजबूत होगी ।