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दूसरा हमारी बुराई करे यस प्रशंसा करे, दोनों उसकी राय या विचार है,इससे हमें क्या फ़र्क पड़ता है? दूसरे से अच्छे होने का हम क्यों सर्टिफिकेट लेना चाहते हैं? जब तक दूसरे से सर्टिफिकेट लेते रहेंगे, कि दूसरा हमें अच्छा कहे तब तक हम परेशान ही रहेंगे। जब तक दूसरे से कुछ पाने कि अपेक्षा करते हैं तब तक हम परेशान ही रहेंगे क्योंकि दूसरा कभी भी हमारी आवश्यकताएं एवम अपेक्षा पूरी नहीं कर सकता है। हमें अपने ऊपर भरोसा रखना होगा। हमे अपने पुरुषार्थ पर भरोसा रखना होगा। सुने हम सबकी लेकिन करें अपनी मन कि, जो दिल कहे वही करना चाहिए। जो भी दुःख तकलीफ़ है वह हमारे अपने प्रारब्ध के कारण हैं, उसे भोग कर और पुरुषार्थ द्वारा ही दूर किया जा सकता है अन्य कोई दुसरा उपाय नहीं है, यही ईश्वर का नियम है।
राम इकबाल सिंह “बादशाह” चेयरमैन, नैकॉफ, नई दिल्ली